हे दुनिया के संतप्त जनो,
पत्नी-पीड़ित हे विकल मनो,
कूँआ प्यासे पर आया है
मुझ बुद्धिमान की बात सुनो!
यदि जीवन सफल बनाना है
यदि सचमुच पुण्य कमाना है,
तो एक बात मेरी जानो
साले को अपना गुरु मानो!
छोड़ो मां-बाप बिचारों को
छोड़ो बचपन के यारों को,
कुल-गोत्र, बंधु-बांधव छोड़ो
छोड़ो सब रिश्तेदारों को।
छोड़ो प्रतिमाओं का पूजन
पूजो दिवाल के आले को,
पत्नी को रखना है प्रसन्न
तो पूजो पहले साले को।
गंगा की तारन-शक्ति घटी
यमुना का पानी क्षीण हुआ,
काशी की करवट व्यर्थ हुई
मथुरा भी दीन-मलीन हुआ।
अब कलियुग में ससुराल तीर्थ
जीवित-जाग्रत पहचानो रे!
यदि अपनी सुफल मनानी है
साले को पंडा मानो रे!
इस भवसागर से तरने को
साला ही तरल त्रिवेणी है,
भव-बाधाओं पर चढ़ने को
साला मजबूत नसैनी है।
गृह-कलह-कष्ट काटन के हित
साला ही तेज कतरनी है,
पत्नी-भक्तों की माला में
साला ही श्रेष्ठ सुमरनी है।
इस अग-जग के अंधियारे में
साला ही सिर्फ उजाला है,
विधना की कौतुक रचना में
साले का ठाठ निराला है।
साला ही सुख की कुंजी है,
पत्नी तो केवल ताला है,
भाई हो सकता ढाल मगर
साला तो पैना भाला है।
वह जिस उर में छिद गया
प्राण उसके ही हरने वाला है,
वह जिस घर में घुस गया
वहां से नहीं निकलने वाला है।
इसलिए जगत के जीजाओ,
अब अपनी खैर मनाओ तुम
दुनिया में सुख से रहना है
साले को शीश नवाओ तुम।
यदि साले से परहेज किया
तो हरदम साले जाओगे,
जिंदगी कोफ्त हो जाएगी
तुम बड़े कसाले जाओगे।
साड़ियां फटेंगी रोज-रोज
बंदर बर्तन ले जाएंगे,
हर रोज दर्द सिर में होगा
तुम दवा कहां से लाओगे?
हफ्तों तक उनकी जीजी से
बातों में मेल नहीं होगा,
चेहरे पर चमक नहीं होगी
बालों में तेल नहीं होगा।
दालों में कंकर निकलेंगे
सब्जी में होगा नमक तेज,
घरनी की कृपा बिना घर में
रहना कुछ खेल नहीं होगा।
इसलिए भाइयो, मत नाहक
अपनी ताकत अजमाओ रे!
देवी जी से लेकर सलाह
साले को घर ले आओ रे!
तुम स्वयं बैठ जाओ नीचे
आसन पर उसे बिठाओ रे!
खुद पानी पर संतोष करो
साले को दूध पिलाओ रे!
तुम केवल 'हाँ' कहना सीखो
मत 'ना' जुबान पर लाओ रे!
अपने कमीज सींकर पहनो
साले को सूट सिलाओ रे!
वाणी में मिश्री घोल चलो
मीठे ही बोल सुनाओ रे!
दादा को चाहे डैम कहो
साले को डियर बताओ रे!
साले को गैर नहीं मानो
साले को समझो जिगरी रे!
साले को गाली मत मानो
मानो बी0 ए0 की डिगरी रे!
साले के परम पराक्रम को
अब तक किस कवि ने कूता है!
ए डाक्टरेट लेने वालो!
देखो, यह विषय अछूता है।
कुछ सोचा है इस चंदा का
छाया किसलिए उजाला है?
शंकर भोले ने इसे किसलिए
अपने शीश बिठाला है?
क्यों आसमान पर चढ़ा हुआ
क्यों इसका रुतबा आला है?
यह भी लक्ष्मी का भाई है
भगवान विष्णु का साला है।
यह तो सब लोग जानते हैं
कान्हा गोकुल के ग्वाले थे,
मक्खन तक चोरी करते थे
सूरत से बेहद काले थे।
पर, इसीलिए इस दुनिया ने
पूजा भगवान मान करके
गांडीव धनुर्धर पराक्रमी
योद्धा अर्जुन के साले थे।
क्या कहें कि हम तो जीवन में
यारो किस्मत वाले न हुए,
कोरे बामन के बैल रहे
धनवानों के लाले न हुए।
हम हुए अकेले ही पैदा
भाई-बहनों वाले न हुए,
जिंदगी हाय बेकार गई
मंत्रीजी के साले न हुए।
पर गई हमारी जाने दो
अपनी तो बात बनाओ तुम,
अपनों के नहीं, दूसरों के
अनुभव से लाभ उठाओ तुम।
यदि नहीं नौकरी मिलती है
या नहीं तरक्की होती है,
तो जो भी अपना अफसर हो
साले उसके बन जाओ तुम।
परमिट मिलने में दिक्कत हो
ठेके में चांस न आता हो,
बिजनिस में दाल न गलती हो
या हर सौदे में घाटा हो।
तो पूछो नहीं पंडितों से
फौरन ही टिकट कटाओ रे!
तुम फौरन दिल्ली आओ रे!
नुस्खा अचूक अजमाओ रे!
तुम नहीं किसी को अर्जी दो
तुम नहीं किसी पर जाओ रे!
तुम नहीं किसी की बात सुनो
अपनी भी नहीं बताओ रे!
कुछ साड़ी लो, कुछ लो मीठा
कुछ फल लो, लो कुछ फूल-पान,
लग जाए दांव, आफीसर की
पत्नी को बहन बनाओ रे!
बच्चों के मामा बन जाओ
बच्ची को गोद खिलाओ रे!
उनकी माता के चरण छुओ
दादा के पैर दबाओ रे!
मत खाली हाथ घुसो घर में
कुछ लाओ रे, कुछ लाओ रे!
बाबूजी अगर डाँट भी दें
बोलो मत, पूँछ हिलाओ रे
यदि इसी तरह चालीस दिवस
संयम से ध्यान लगाओगे,
दिन में बे-नागा चार बार
बाबूजी के घर जाओगे।
तो स्वयं बहनजी पिघलेंगी
बहनोई होंगे मेहरबान,
सच कहता हूँ तुम घर बैठे
चारों पदार्थ पा जाओगे।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ
साला पर सबसे आला है,
हैं और सभी रिश्ते फीके
साला बस गरम मसाला है।
खुल गए भाग्य उस जीजा के
तर गईं पीढ़ियां तीन-तीन
जिसके घर में होकर प्रसन्न
साले ने डेरा डाला है।
नामुकिन जिसको सर करना
साला वह लोहे का गढ़ है,
साले की पहुँच दूर तक है
साले की चूल्हे में जड़ है।
तुमने भी यह माना होगा
तुमने भी पहचाना होगा,
है सकल खुदाई एक तरफ
जोरू का भाई एक तरफ।
पत्नी-पीड़ित हे विकल मनो,
कूँआ प्यासे पर आया है
मुझ बुद्धिमान की बात सुनो!
यदि जीवन सफल बनाना है
यदि सचमुच पुण्य कमाना है,
तो एक बात मेरी जानो
साले को अपना गुरु मानो!
छोड़ो मां-बाप बिचारों को
छोड़ो बचपन के यारों को,
कुल-गोत्र, बंधु-बांधव छोड़ो
छोड़ो सब रिश्तेदारों को।
छोड़ो प्रतिमाओं का पूजन
पूजो दिवाल के आले को,
पत्नी को रखना है प्रसन्न
तो पूजो पहले साले को।
गंगा की तारन-शक्ति घटी
यमुना का पानी क्षीण हुआ,
काशी की करवट व्यर्थ हुई
मथुरा भी दीन-मलीन हुआ।
अब कलियुग में ससुराल तीर्थ
जीवित-जाग्रत पहचानो रे!
यदि अपनी सुफल मनानी है
साले को पंडा मानो रे!
इस भवसागर से तरने को
साला ही तरल त्रिवेणी है,
भव-बाधाओं पर चढ़ने को
साला मजबूत नसैनी है।
गृह-कलह-कष्ट काटन के हित
साला ही तेज कतरनी है,
पत्नी-भक्तों की माला में
साला ही श्रेष्ठ सुमरनी है।
इस अग-जग के अंधियारे में
साला ही सिर्फ उजाला है,
विधना की कौतुक रचना में
साले का ठाठ निराला है।
साला ही सुख की कुंजी है,
पत्नी तो केवल ताला है,
भाई हो सकता ढाल मगर
साला तो पैना भाला है।
वह जिस उर में छिद गया
प्राण उसके ही हरने वाला है,
वह जिस घर में घुस गया
वहां से नहीं निकलने वाला है।
इसलिए जगत के जीजाओ,
अब अपनी खैर मनाओ तुम
दुनिया में सुख से रहना है
साले को शीश नवाओ तुम।
यदि साले से परहेज किया
तो हरदम साले जाओगे,
जिंदगी कोफ्त हो जाएगी
तुम बड़े कसाले जाओगे।
साड़ियां फटेंगी रोज-रोज
बंदर बर्तन ले जाएंगे,
हर रोज दर्द सिर में होगा
तुम दवा कहां से लाओगे?
हफ्तों तक उनकी जीजी से
बातों में मेल नहीं होगा,
चेहरे पर चमक नहीं होगी
बालों में तेल नहीं होगा।
दालों में कंकर निकलेंगे
सब्जी में होगा नमक तेज,
घरनी की कृपा बिना घर में
रहना कुछ खेल नहीं होगा।
इसलिए भाइयो, मत नाहक
अपनी ताकत अजमाओ रे!
देवी जी से लेकर सलाह
साले को घर ले आओ रे!
तुम स्वयं बैठ जाओ नीचे
आसन पर उसे बिठाओ रे!
खुद पानी पर संतोष करो
साले को दूध पिलाओ रे!
तुम केवल 'हाँ' कहना सीखो
मत 'ना' जुबान पर लाओ रे!
अपने कमीज सींकर पहनो
साले को सूट सिलाओ रे!
वाणी में मिश्री घोल चलो
मीठे ही बोल सुनाओ रे!
दादा को चाहे डैम कहो
साले को डियर बताओ रे!
साले को गैर नहीं मानो
साले को समझो जिगरी रे!
साले को गाली मत मानो
मानो बी0 ए0 की डिगरी रे!
साले के परम पराक्रम को
अब तक किस कवि ने कूता है!
ए डाक्टरेट लेने वालो!
देखो, यह विषय अछूता है।
कुछ सोचा है इस चंदा का
छाया किसलिए उजाला है?
शंकर भोले ने इसे किसलिए
अपने शीश बिठाला है?
क्यों आसमान पर चढ़ा हुआ
क्यों इसका रुतबा आला है?
यह भी लक्ष्मी का भाई है
भगवान विष्णु का साला है।
यह तो सब लोग जानते हैं
कान्हा गोकुल के ग्वाले थे,
मक्खन तक चोरी करते थे
सूरत से बेहद काले थे।
पर, इसीलिए इस दुनिया ने
पूजा भगवान मान करके
गांडीव धनुर्धर पराक्रमी
योद्धा अर्जुन के साले थे।
क्या कहें कि हम तो जीवन में
यारो किस्मत वाले न हुए,
कोरे बामन के बैल रहे
धनवानों के लाले न हुए।
हम हुए अकेले ही पैदा
भाई-बहनों वाले न हुए,
जिंदगी हाय बेकार गई
मंत्रीजी के साले न हुए।
पर गई हमारी जाने दो
अपनी तो बात बनाओ तुम,
अपनों के नहीं, दूसरों के
अनुभव से लाभ उठाओ तुम।
यदि नहीं नौकरी मिलती है
या नहीं तरक्की होती है,
तो जो भी अपना अफसर हो
साले उसके बन जाओ तुम।
परमिट मिलने में दिक्कत हो
ठेके में चांस न आता हो,
बिजनिस में दाल न गलती हो
या हर सौदे में घाटा हो।
तो पूछो नहीं पंडितों से
फौरन ही टिकट कटाओ रे!
तुम फौरन दिल्ली आओ रे!
नुस्खा अचूक अजमाओ रे!
तुम नहीं किसी को अर्जी दो
तुम नहीं किसी पर जाओ रे!
तुम नहीं किसी की बात सुनो
अपनी भी नहीं बताओ रे!
कुछ साड़ी लो, कुछ लो मीठा
कुछ फल लो, लो कुछ फूल-पान,
लग जाए दांव, आफीसर की
पत्नी को बहन बनाओ रे!
बच्चों के मामा बन जाओ
बच्ची को गोद खिलाओ रे!
उनकी माता के चरण छुओ
दादा के पैर दबाओ रे!
मत खाली हाथ घुसो घर में
कुछ लाओ रे, कुछ लाओ रे!
बाबूजी अगर डाँट भी दें
बोलो मत, पूँछ हिलाओ रे
यदि इसी तरह चालीस दिवस
संयम से ध्यान लगाओगे,
दिन में बे-नागा चार बार
बाबूजी के घर जाओगे।
तो स्वयं बहनजी पिघलेंगी
बहनोई होंगे मेहरबान,
सच कहता हूँ तुम घर बैठे
चारों पदार्थ पा जाओगे।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ
साला पर सबसे आला है,
हैं और सभी रिश्ते फीके
साला बस गरम मसाला है।
खुल गए भाग्य उस जीजा के
तर गईं पीढ़ियां तीन-तीन
जिसके घर में होकर प्रसन्न
साले ने डेरा डाला है।
नामुकिन जिसको सर करना
साला वह लोहे का गढ़ है,
साले की पहुँच दूर तक है
साले की चूल्हे में जड़ है।
तुमने भी यह माना होगा
तुमने भी पहचाना होगा,
है सकल खुदाई एक तरफ
जोरू का भाई एक तरफ।
अन्य
- नाजायज बच्चे / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita
- क्या बताएँ आपसे / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita
- भारतीय रेल / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita
- पत्नी को परमेश्वर मानो / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- साला ही गरम मसाला है / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- साली क्या है रसगुल्ला है / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- आराम करो / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- तुम से आप / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- नया आदमी / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- तो क्या यहीं? / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- फिर तो / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- ससुर जी उवाच / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- कौन है ये जैनी? / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- खटमल-मच्छर-युद्ध / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- व्यर्थ / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- चोरी की रपट / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- आधुनिकता / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- मरने से क्या डरना / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- सवाल में बवाल / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- पक्के गायक / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- व्यंग्य एक नश्तर है / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- दागो, भागो / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- फ़िल्मी निर्माताओं से / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- कवि सम्मेलन / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
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- "कब मर रहे हैं?" / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- एक से एक बढ़ के / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- तू-तू, मैं-मैं / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- उल्लू बनाती हो? / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- औरत पालने को कलेजा चाहिये / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- पुराना पेटीकोट / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- चल गई (कविता) / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- देश के लिये नेता / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- दफ़्तरीय कविताएं / शैल चतुर्वेदी Hasya kavita
- मूल अधिकार / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- हे वोटर महाराज / शैल चतुर्वेदी Hasya kavita
- पेट का सवाल है / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- आँख और लड़की / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- भीख माँगते शर्म नहीं आती / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- एक बेरोज़गार मित्र / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita