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Saturday 11 March 2017

Hasya Kavitaen Hasya Kavita लोकप्रिय हास्य कविताएं हास्य कविता

Monday 20 February 2017

नाजायज बच्चे / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita

परेशान पिता ने
जनता के अस्पताल में फोन किया
“डाक्टर साहब
मेरा पूरा परिवार बीमार हो गया है

बड़े बेटे आंदोलन को बुखार
प्रदर्शन को निमोनिया
तथा
घेराव को कैंसर हो गया है
सबसे छोटा बेटा ‘बंद’
हर तीन घंटे बाद उल्टियाँ कर रहा है

मेरा भतीजा हड़ताल सिंह
हार्ट अटैक से मर रहा है
डाक्टर साहब, प्लीज जल्दी आइए
प्यारी बिटिया ‘सांप्रदायिकता’ बेहोश पड़ी है
उसे बचाइए।”

डाक्टर बोला, “आई एम सौरी
मैं सिद्धांतवादी आदमी हूँ
नाजायज बच्चों का इलाज नहीं करता हूँ।”

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Sunday 19 February 2017

क्या बताएँ आपसे / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita

क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए

भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे
हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े

रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते
सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते
अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है

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भारतीय रेल / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita

एक बार हमें करनी पड़ी रेल की यात्रा
देख सवारियों की मात्रा
पसीने लगे छूटने
हम घर की तरफ़ लगे फूटने

इतने में एक कुली आया
और हमसे फ़रमाया
साहब अंदर जाना है?
हमने कहा हां भाई जाना है
उसने कहा अंदर तो पंहुचा दूंगा
पर रुपये पूरे पचास लूंगा
हमने कहा समान नहीं केवल हम हैं
तो उसने कहा क्या आप किसी सामान से कम हैं ?

जैसे तैसे डिब्बे के अंदर पहुचें
यहां का दृश्य तो ओर भी घमासान था
पूरा का पूरा डिब्बा अपने आप में एक हिंदुस्तान था
कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था
जिसे खड़े होने की भी जगह नही मिली वो सीट के नीचे पड़ा था

इतने में एक बोरा उछालकर आया ओर गंजे के सर से टकराया
गंजा चिल्लाया यह किसका बोरा है ?
बाजू वाला बोला इसमें तो बारह साल का छोरा है

तभी कुछ आवाज़ हुई और
इतने मैं एक बोला चली चली
दूसरा बोला या अली
हमने कहा काहे की अली काहे की बलि
ट्रेन तो बगल वाली चली

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पत्नी को परमेश्वर मानो / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita

यदि ईश्वर में विश्वास न हो,
उससे कुछ फल की आस न हो,
तो अरे नास्तिको! घर बैठे,
साकार ब्रह्‌म को पहचानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!

वे अन्नपूर्णा जग-जननी,
माया हैं, उनको अपनाओ।
वे शिवा, भवानी, चंडी हैं,
तुम भक्ति करो, कुछ भय खाओ।
सीखो पत्नी-पूजन पद्धति,
पत्नी-अर्चन, पत्नीचर्या
पत्नी-व्रत पालन करो और
पत्नीवत्‌ शास्त्र पढ़े जाओ।
अब कृष्णचंद्र के दिन बीते,
राधा के दिन बढ़ती के हैं।
यह सदी बीसवीं है, भाई !
नारी के ग्रह चढ़ती के हैं।
तुम उनका छाता, कोट, बैग,
ले पीछे-पीछे चला करो,
संध्या को उनकी शय्‌या पर
नियमित मच्छरदानी तानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो।

तुम उनसे पहले उठा करो,
उठते ही चाय तयार करो।
उनके कमरे के कभी अचानक,
खोला नहीं किवाड़ करो।
उनकी पसंद के कार्य करो,
उनकी रुचियों को पहचानो,
तुम उनके प्यारे कुत्ते को,
बस चूमो-चाटो, प्यार करो।
तुम उनको नाविल पढ़ने दो
आओ कुछ घर का काम करो।
वे अगर इधर आ जाएं कहीं ,
तो कहो-प्रिये, आराम करो!
उनकी भौंहें सिगनल समझो,
वे चढ़ीं कहीं तो खैर नहीं,
तुम उन्हें नहीं डिस्टर्ब करो,
ए हटो, बजाने दो प्यानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!

तुम दफ्तर से आ गए, बैठिए!
उनको क्लब में जाने दो।
वे अगर देर से आती हैं,
तो मत शंका को आने दो।
तुम समझो वह हैं फूल,
कहीं मुरझा न जाएं घर में रहकर!
तुम उन्हें हवा खा आने दो,
तुम उन्हें रोशनी पाने दो,
तुम समझो 'ऐटीकेट' सदा,
उनके मित्रों से प्रेम करो।
वे कहाँ, किसलिए जाती हैं-
कुछ मत पूछो, ऐ 'शेम' करो !
यदि जग में सुख से जीना है,
कुछ रस की बूँदें पीना है,
तो ऐ विवाहितो, आँख मूँद,
मेरे कहने को सच मानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो।

मित्रों से जब वह बात करें,
बेहतर है तब मत सुना करो।
तुम दूर अकेले खड़े-खड़े,
बिजली के खंबे गिना करो।

तुम उनकी किसी सहेली को
मत देखो, कभी न बात करो।
उनके पीछे उनके दराज से
कभी नहीं उत्पात करो।
तुम समझ उन्हें स्टीम गैस,
अपने डिब्बे को जोड़ चलो।
जो छोटे स्टेशन आएं तुम,
उन सबको पीछे छोड़ चलो।
जो सँभल कदम तुम चले-चले,
तो हिन्दू-सदगति पाओगे,
मरते ही हूरें घेरेंगी,
तुम चूको नहीं, मुसलमानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!

तुम उनके फौजी शासन में,
चुपके राशन ले लिया करो।
उनके चेकों पर सही-सही
अपने हस्ताक्षर किया करो।
तुम समझो उन्हें 'डिफेंस एक्ट',
कब पता नहीं क्या कर बैठें ?
वे भारत की सरकार, नहीं
उनसे सत्याग्रह किया करो।
छह बजने के पहले से ही,
उनका करफ्यू लग जाता है।
बस हुई जरा-सी चूक कि
झट ही 'आर्डिनेंस' बन जाता है।
वे 'अल्टीमेटम' दिए बिना ही
युद्ध शुरू कर देती हैं,
उनको अपनी हिटलर समझो,
चर्चिल-सा डिक्टेटर जानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो।

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साला ही गरम मसाला है / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita

हे दुनिया के संतप्त जनो,
पत्नी-पीड़ित हे विकल मनो,
कूँआ प्यासे पर आया है
मुझ बुद्धिमान की बात सुनो!
यदि जीवन सफल बनाना है
यदि सचमुच पुण्य कमाना है,
तो एक बात मेरी जानो
साले को अपना गुरु मानो!
छोड़ो मां-बाप बिचारों को
छोड़ो बचपन के यारों को,
कुल-गोत्र, बंधु-बांधव छोड़ो
छोड़ो सब रिश्तेदारों को।
छोड़ो प्रतिमाओं का पूजन
पूजो दिवाल के आले को,
पत्नी को रखना है प्रसन्न
तो पूजो पहले साले को।
गंगा की तारन-शक्ति घटी
यमुना का पानी क्षीण हुआ,
काशी की करवट व्यर्थ हुई
मथुरा भी दीन-मलीन हुआ।
अब कलियुग में ससुराल तीर्थ
जीवित-जाग्रत पहचानो रे!
यदि अपनी सुफल मनानी है
साले को पंडा मानो रे!

इस भवसागर से तरने को
साला ही तरल त्रिवेणी है,
भव-बाधाओं पर चढ़ने को
साला मजबूत नसैनी है।
गृह-कलह-कष्ट काटन के हित
साला ही तेज कतरनी है,
पत्नी-भक्तों की माला में
साला ही श्रेष्ठ सुमरनी है।
इस अग-जग के अंधियारे में
साला ही सिर्फ उजाला है,
विधना की कौतुक रचना में
साले का ठाठ निराला है।
साला ही सुख की कुंजी है,
पत्नी तो केवल ताला है,
भाई हो सकता ढाल मगर
साला तो पैना भाला है।
वह जिस उर में छिद गया
प्राण उसके ही हरने वाला है,
वह जिस घर में घुस गया
वहां से नहीं निकलने वाला है।
इसलिए जगत के जीजाओ,
अब अपनी खैर मनाओ तुम
दुनिया में सुख से रहना है
साले को शीश नवाओ तुम।

यदि साले से परहेज किया
तो हरदम साले जाओगे,
जिंदगी कोफ्त हो जाएगी
तुम बड़े कसाले जाओगे।
साड़ियां फटेंगी रोज-रोज
बंदर बर्तन ले जाएंगे,
हर रोज दर्द सिर में होगा
तुम दवा कहां से लाओगे?
हफ्तों तक उनकी जीजी से
बातों में मेल नहीं होगा,
चेहरे पर चमक नहीं होगी
बालों में तेल नहीं होगा।
दालों में कंकर निकलेंगे
सब्जी में होगा नमक तेज,
घरनी की कृपा बिना घर में
रहना कुछ खेल नहीं होगा।
इसलिए भाइयो, मत नाहक
अपनी ताकत अजमाओ रे!
देवी जी से लेकर सलाह
साले को घर ले आओ रे!
तुम स्वयं बैठ जाओ नीचे
आसन पर उसे बिठाओ रे!
खुद पानी पर संतोष करो
साले को दूध पिलाओ रे!

तुम केवल 'हाँ' कहना सीखो
मत 'ना' जुबान पर लाओ रे!
अपने कमीज सींकर पहनो
साले को सूट सिलाओ रे!
वाणी में मिश्री घोल चलो
मीठे ही बोल सुनाओ रे!
दादा को चाहे डैम कहो
साले को डियर बताओ रे!
साले को गैर नहीं मानो
साले को समझो जिगरी रे!
साले को गाली मत मानो
मानो बी0 ए0 की डिगरी रे!
साले के परम पराक्रम को
अब तक किस कवि ने कूता है!
ए डाक्टरेट लेने वालो!
देखो, यह विषय अछूता है।
कुछ सोचा है इस चंदा का
छाया किसलिए उजाला है?
शंकर भोले ने इसे किसलिए
अपने शीश बिठाला है?
क्यों आसमान पर चढ़ा हुआ
क्यों इसका रुतबा आला है?
यह भी लक्ष्मी का भाई है
भगवान विष्णु का साला है।

यह तो सब लोग जानते हैं
कान्हा गोकुल के ग्वाले थे,
मक्खन तक चोरी करते थे
सूरत से बेहद काले थे।
पर, इसीलिए इस दुनिया ने
पूजा भगवान मान करके
गांडीव धनुर्धर पराक्रमी
योद्धा अर्जुन के साले थे।
क्या कहें कि हम तो जीवन में
यारो किस्मत वाले न हुए,
कोरे बामन के बैल रहे
धनवानों के लाले न हुए।
हम हुए अकेले ही पैदा
भाई-बहनों वाले न हुए,
जिंदगी हाय बेकार गई
मंत्रीजी के साले न हुए।
पर गई हमारी जाने दो
अपनी तो बात बनाओ तुम,
अपनों के नहीं, दूसरों के
अनुभव से लाभ उठाओ तुम।
यदि नहीं नौकरी मिलती है
या नहीं तरक्की होती है,
तो जो भी अपना अफसर हो
साले उसके बन जाओ तुम।

परमिट मिलने में दिक्कत हो
ठेके में चांस न आता हो,
बिजनिस में दाल न गलती हो
या हर सौदे में घाटा हो।
तो पूछो नहीं पंडितों से
फौरन ही टिकट कटाओ रे!
तुम फौरन दिल्ली आओ रे!
नुस्खा अचूक अजमाओ रे!
तुम नहीं किसी को अर्जी दो
तुम नहीं किसी पर जाओ रे!
तुम नहीं किसी की बात सुनो
अपनी भी नहीं बताओ रे!
कुछ साड़ी लो, कुछ लो मीठा
कुछ फल लो, लो कुछ फूल-पान,
लग जाए दांव, आफीसर की
पत्नी को बहन बनाओ रे!
बच्चों के मामा बन जाओ
बच्ची को गोद खिलाओ रे!
उनकी माता के चरण छुओ
दादा के पैर दबाओ रे!
मत खाली हाथ घुसो घर में
कुछ लाओ रे, कुछ लाओ रे!
बाबूजी अगर डाँट भी दें
बोलो मत, पूँछ हिलाओ रे

यदि इसी तरह चालीस दिवस
संयम से ध्यान लगाओगे,
दिन में बे-नागा चार बार
बाबूजी के घर जाओगे।
तो स्वयं बहनजी पिघलेंगी
बहनोई होंगे मेहरबान,
सच कहता हूँ तुम घर बैठे
चारों पदार्थ पा जाओगे।

मैं इसीलिए तो कहता हूँ
साला पर सबसे आला है,
हैं और सभी रिश्ते फीके
साला बस गरम मसाला है।
खुल गए भाग्य उस जीजा के
तर गईं पीढ़ियां तीन-तीन
जिसके घर में होकर प्रसन्न
साले ने डेरा डाला है।
नामुकिन जिसको सर करना
साला वह लोहे का गढ़ है,
साले की पहुँच दूर तक है
साले की चूल्हे में जड़ है।
तुमने भी यह माना होगा
तुमने भी पहचाना होगा,
है सकल खुदाई एक तरफ
जोरू का भाई एक तरफ।

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साली क्या है रसगुल्ला है / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita

तुम श्लील कहो, अश्लील कहो
चाहो तो खुलकर गाली दो !
तुम भले मुझे कवि मत मानो
मत वाह-वाह की ताली दो !
पर मैं तो अपने मालिक से
हर बार यही वर माँगूँगा-
तुम गोरी दो या काली दो
भगवान मुझे इक साली दो !

सीधी दो, नखरों वाली दो
साधारण या कि निराली दो,
चाहे बबूल की टहनी दो
चाहे चंपे की डाली दो।
पर मुझे जन्म देने वाले
यह माँग नहीं ठुकरा देना-
असली दो, चाहे जाली दो
भगवान मुझे एक साली दो।

वह यौवन भी क्या यौवन है
जिसमें मुख पर लाली न हुई,
अलकें घूँघरवाली न हुईं
आँखें रस की प्याली न हुईं।
वह जीवन भी क्या जीवन है
जिसमें मनुष्य जीजा न बना,
वह जीजा भी क्या जीजा है
जिसके छोटी साली न हुई।

तुम खा लो भले प्लेटों में
लेकिन थाली की और बात,
तुम रहो फेंकते भरे दाँव
लेकिन खाली की और बात।
तुम मटके पर मटके पी लो
लेकिन प्याली का और मजा,
पत्नी को हरदम रखो साथ,
लेकिन साली की और बात।

पत्नी केवल अर्द्धांगिन है
साली सर्वांगिण होती है,
पत्नी तो रोती ही रहती
साली बिखेरती मोती है।
साला भी गहरे में जाकर
अक्सर पतवार फेंक देता
साली जीजा जी की नैया
खेती है, नहीं डुबोती है।

विरहिन पत्नी को साली ही
पी का संदेश सुनाती है,
भोंदू पत्नी को साली ही
करना शिकार सिखलाती है।
दम्पति में अगर तनाव
रूस-अमरीका जैसा हो जाए,
तो साली ही नेहरू बनकर
भटकों को राह दिखाती है।

साली है पायल की छम-छम
साली है चम-चम तारा-सी,
साली है बुलबुल-सी चुलबुल
साली है चंचल पारा-सी ।
यदि इन उपमाओं से भी कुछ
पहचान नहीं हो पाए तो,
हर रोग दूर करने वाली
साली है अमृतधारा-सी।

मुल्ला को जैसे दुःख देती
बुर्के की चौड़ी जाली है,
पीने वालों को ज्यों अखरी
टेबिल की बोतल खाली है।
चाऊ को जैसे च्याँग नहीं
सपने में कभी सुहाता है,
ऐसे में खूँसट लोगों को
यह कविता साली वाली है।

साली तो रस की प्याली है
साली क्या है रसगुल्ला है,
साली तो मधुर मलाई-सी
अथवा रबड़ी का कुल्ला है।
पत्नी तो सख्त छुहारा है
हरदम सिकुड़ी ही रहती है
साली है फाँक संतरे की
जो कुछ है खुल्लमखुल्ला है।

साली चटनी पोदीने की
बातों की चाट जगाती है,
साली है दिल्ली का लड्डू
देखो तो भूख बढ़ाती है।
साली है मथुरा की खुरचन
रस में लिपटी ही आती है,
साली है आलू का पापड़
छूते ही शोर मचाती है।

कुछ पता तुम्हें है, हिटलर को
किसलिए अग्नि ने छार किया ?
या क्यों ब्रिटेन के लोगों ने
अपना प्रिय किंग उतार दिया ?
ये दोनों थे साली-विहीन
इसलिए लड़ाई हार गए,
वह मुल्क-ए-अदम सिधार गए
यह सात समुंदर पार गए।

किसलिए विनोबा गाँव-गाँव
यूँ मारे-मारे फिरते थे ?
दो-दो बज जाते थे लेकिन
नेहरू के पलक न गिरते थे।
ये दोनों थे साली-विहीन
वह बाबा बाल बढ़ा निकला,
चाचा भी कलम घिसा करता
अपने घर में बैठा इकला।

मुझको ही देखो साली बिन
जीवन ठाली-सा लगता है,
सालों का जीजा जी कहना
मुझको गाली सा लगता है।
यदि प्रभु के परम पराक्रम से
कोई साली पा जाता मैं,
तो भला हास्य-रस में लिखकर
पत्नी को गीत बनाता मैं?

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