Sunday, 19 February 2017

तुम से आप / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita

तुम भी जल थे
हम भी जल थे
इतने घुले-मिले थे
कि एक दूसरे से
जलते न थे।

न तुम खल थे
न हम खल थे
इतने खुले-खुले थे
कि एक दूसरे को
खलते न थे।

अचानक हम तुम्हें खलने लगे,
तो तुम हमसे जलने लगे।
तुम जल से भाप हो गए
और 'तुम' से 'आप' हो गए।

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