Sunday 19 February 2017

पुराना पेटीकोट / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita

पैसे बचाने की आदत
अच्छी है डियर
किंतु जब तुम
पुरानी साड़ी को फाड़कर
सीती हो मेरा अन्डरवियर
तो तुम्हारा आएडिया
बहुत बुरा लगता है
फिर भी पहन लेता हूँ
घिसी साड़ी कि वे चड्डियाँ
जो दो चार बार उठने बैठने पर ही
बोल जाती है
तिस तुम कहती हो-
"बच्चे नहीं हो
घर चलाना सीखो
भविष्य के लिये बचाना सीखो।"

अन्डरवियर तक तो बचत ठीक है
किंतु उस दिन
पड़ोसन काकी को तुमने
अपनी नई योजना सुनाई
तो क़सम से
उस रात नींद नहीं आई
तुम कह रही थी-"काकी,
गेहूँ तीन रुपये का
एक किलो बिकता है
और चावल!
स्वप्न में भी कहाँ दिखता है
सोचती हूँ
इनका एक कुर्ता
रेशमी साड़ी से निकाल दूं
किनारी वाला हिस्सा
आस्तीन और गले पर ड़ाल दूँ

साड़ी में से एक क्या दो कुर्ते निकल आएँगे
साड़ी चल चुकी है दस साल
कुर्ते भी कुछ साल चल जएँगे।"
तो हे कपड़ो की एंजीनियर
अपनी प्यारी साड़ी को
मत करना टियर
सच कहता हूँ
तुम्हारी कला के प्रदर्शन का माध्यम
मैं बनूँ
इसकी चाह नहीं
क्या बचत करने की
कोई और राह नहीं?
हे, सुनो!
पुराना पेटिकोट
जो तुम कमर मे बान्धती हो
मैं गले में बाँध लूंगा
सारा तन
उसी से ढाँक लूंगा
ख़र्च बच जायेगा
कुर्ते और पजामे का
और फैशन निकल आयेगा
एक नये जामे का।

अन्य 

No comments:

Post a Comment