हमारी शादी को बरसों बीत गए
लोग-बाग तो
शराब पीना सीख गए
मगर हमारी पत्नी ने
चाय तक नहीं छुई
हमने ज़िद की तो वो बोली-
" चाय भी कोई चीज़ है मुई
ज़हर है ज़हर है
वो भी गिलास भर
पीने बैठते हो तो
घंटो में खत्म करते हो
भगवान जाने
कैसे हज़म करते हो
पचास बार कहा
चाय हज़मा बिगाडती है
भूख को मारती है
चालीस के हो गए
दो रोटी खाते हो
मैं ठीक खाती हूँ
तो मुझे चिढ़ाते हो
क्या इसलिए
पंचो के सामने प्रतिज्ञा की थी
हमारे बाप ने
गाय समझकर दी थी।"
हम बैलों की तरह
चुपचाप खड़े थे
दुम हिलाकर बोले-
"चाय नहीं तो दूध ही पिया करो
सबेरे-सबेरे कुछ तो लिया करो।"
वे बोलीं-"दूध!
चाय तो रो-रो कर बनती है
आधी दूध
और आधी, पानी में छनती है
फिल हैं
तुम्हारे दूध की भूखी नहीं हूँ
गाँव की हूँ
गाय और भैसों के बीच में रही हूँ
फिर कभी चाय की मत कहना
हरग़िज़ नहीं पिउँगी
अगर अपनी पर आ गई
तो सब की बन्द कर दूंगी।"
पिछले साल
गर्मियों में
दो माह की छुट्टियों में
हम जा रहे थे
उनके साथ
बस में
दिल्ली से देहरादून
तारीख़ थी दो जून
सामने वली सीट पर
एक नई नवेली
बैठी थी अकेली
उदास
खिड़की के पास
सब आँखे सेंक रहे थे
हम तो बस
सहानुभूतीवश देख रहे थे
तभी पत्नी ने हमें
कुहनी मारी
हमने सोचा
धोखे से लगी है
मगर थोड़ी देर बाद
उसने हमें नोचा
हमने कटकर
पीछे पलटकर
कहा पत्नी से-"बेचारी दुखी है।"
पत्नी बोली-"यहाँ कौन सुखी है
ख़बरदार जो उधर देखो
देखना है तो इधर देखो।"
हम चुप हो गये
और आँखे मून्दकर
सामने वाली के दुख में खो गए
किसी बस स्टाप पर आँख खुली
इधर उठी
उधर गिरी
पत्नी सो रहीं थी
और सामने वाली
आंसुओ से अपना मुख धो रही थी
हम बस से उतरे
चाय लेकर
वापस लौटे
सामने वाली से बोले-"लीजिए
रोइए मत
चाय पीजिए।"
हमारी पत्नी बोली-
"मैं इधर हूँ
मुझे दीजिए।"
हमने पूछा-"चाय और तुम?"
वो बोली-"हुम
ज़रा सी आँख लग गई
तो बात
चाय तक पहुँच गई
माना की मैं चाय नहीं पीती
पानी की पूछते
मुँह बांधे बैठी हूँ
कुछ तो सोचते
खाने हो नहीं मरती
मगर ज़िद करते
तो ना भी नहीं करती
घुमाने लाए हो
तो अहसान नहीं किया
सभी घुमाते है
औरते मुँह से नहीं कहतीं
ज़बरदस्ती खिलाते है।"
फिर सामने वाली को
अंगूठा दिखाकर
चाय का कप मुँह से लगाकर
चाय!
उनके शब्द में ज़हर
एक साँस में पी ली
बात है साल भर पहले की
अब तक पी रहीं है।
लोग-बाग तो
शराब पीना सीख गए
मगर हमारी पत्नी ने
चाय तक नहीं छुई
हमने ज़िद की तो वो बोली-
" चाय भी कोई चीज़ है मुई
ज़हर है ज़हर है
वो भी गिलास भर
पीने बैठते हो तो
घंटो में खत्म करते हो
भगवान जाने
कैसे हज़म करते हो
पचास बार कहा
चाय हज़मा बिगाडती है
भूख को मारती है
चालीस के हो गए
दो रोटी खाते हो
मैं ठीक खाती हूँ
तो मुझे चिढ़ाते हो
क्या इसलिए
पंचो के सामने प्रतिज्ञा की थी
हमारे बाप ने
गाय समझकर दी थी।"
हम बैलों की तरह
चुपचाप खड़े थे
दुम हिलाकर बोले-
"चाय नहीं तो दूध ही पिया करो
सबेरे-सबेरे कुछ तो लिया करो।"
वे बोलीं-"दूध!
चाय तो रो-रो कर बनती है
आधी दूध
और आधी, पानी में छनती है
फिल हैं
तुम्हारे दूध की भूखी नहीं हूँ
गाँव की हूँ
गाय और भैसों के बीच में रही हूँ
फिर कभी चाय की मत कहना
हरग़िज़ नहीं पिउँगी
अगर अपनी पर आ गई
तो सब की बन्द कर दूंगी।"
पिछले साल
गर्मियों में
दो माह की छुट्टियों में
हम जा रहे थे
उनके साथ
बस में
दिल्ली से देहरादून
तारीख़ थी दो जून
सामने वली सीट पर
एक नई नवेली
बैठी थी अकेली
उदास
खिड़की के पास
सब आँखे सेंक रहे थे
हम तो बस
सहानुभूतीवश देख रहे थे
तभी पत्नी ने हमें
कुहनी मारी
हमने सोचा
धोखे से लगी है
मगर थोड़ी देर बाद
उसने हमें नोचा
हमने कटकर
पीछे पलटकर
कहा पत्नी से-"बेचारी दुखी है।"
पत्नी बोली-"यहाँ कौन सुखी है
ख़बरदार जो उधर देखो
देखना है तो इधर देखो।"
हम चुप हो गये
और आँखे मून्दकर
सामने वाली के दुख में खो गए
किसी बस स्टाप पर आँख खुली
इधर उठी
उधर गिरी
पत्नी सो रहीं थी
और सामने वाली
आंसुओ से अपना मुख धो रही थी
हम बस से उतरे
चाय लेकर
वापस लौटे
सामने वाली से बोले-"लीजिए
रोइए मत
चाय पीजिए।"
हमारी पत्नी बोली-
"मैं इधर हूँ
मुझे दीजिए।"
हमने पूछा-"चाय और तुम?"
वो बोली-"हुम
ज़रा सी आँख लग गई
तो बात
चाय तक पहुँच गई
माना की मैं चाय नहीं पीती
पानी की पूछते
मुँह बांधे बैठी हूँ
कुछ तो सोचते
खाने हो नहीं मरती
मगर ज़िद करते
तो ना भी नहीं करती
घुमाने लाए हो
तो अहसान नहीं किया
सभी घुमाते है
औरते मुँह से नहीं कहतीं
ज़बरदस्ती खिलाते है।"
फिर सामने वाली को
अंगूठा दिखाकर
चाय का कप मुँह से लगाकर
चाय!
उनके शब्द में ज़हर
एक साँस में पी ली
बात है साल भर पहले की
अब तक पी रहीं है।
अन्य
- नाजायज बच्चे / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita
- क्या बताएँ आपसे / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita
- भारतीय रेल / हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य कविता Hasya Kavita
- पत्नी को परमेश्वर मानो / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- साला ही गरम मसाला है / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- साली क्या है रसगुल्ला है / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- आराम करो / गोपालप्रसाद व्यास हास्य कविता Hasya kavita
- तुम से आप / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- नया आदमी / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- तो क्या यहीं? / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- फिर तो / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- ससुर जी उवाच / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- कौन है ये जैनी? / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita
- खटमल-मच्छर-युद्ध / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- व्यर्थ / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- चोरी की रपट / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- आधुनिकता / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- मरने से क्या डरना / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- सवाल में बवाल / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- पक्के गायक / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- व्यंग्य एक नश्तर है / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita
- दागो, भागो / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- फ़िल्मी निर्माताओं से / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- कवि सम्मेलन / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- शायरी का इंक़लाब / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- मजनूं का बाप / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- गांधी की गीता / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- यहाँ कौन सुखी है / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- अप्रेल फूल / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- "कब मर रहे हैं?" / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- एक से एक बढ़ के / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- तू-तू, मैं-मैं / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- उल्लू बनाती हो? / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- औरत पालने को कलेजा चाहिये / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- पुराना पेटीकोट / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- चल गई (कविता) / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- देश के लिये नेता / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- दफ़्तरीय कविताएं / शैल चतुर्वेदी Hasya kavita
- मूल अधिकार / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- हे वोटर महाराज / शैल चतुर्वेदी Hasya kavita
- पेट का सवाल है / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- आँख और लड़की / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- भीख माँगते शर्म नहीं आती / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
- एक बेरोज़गार मित्र / शैल चतुर्वेदी हास्य कविता Hasya kavita
No comments:
Post a Comment