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Sunday 19 February 2017

नया आदमी / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita

डॉक्टर बोला-
दूसरों की तरह
क्यों नहीं जीते हो,
इतनी क्यों पीते हो?

वे बोले-
मैं तो दूसरों से भी
अच्छी तरह जीता हूँ,
सिर्फ़ एक पैग पीता हूँ।
एक पैग लेते ही
मैं नया आदमी
हो जाता हूँ,
फिर बाकी सारी बोतल
उस नए आदमी को ही
पिलाता हूँ।

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तो क्या यहीं? / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita

तलब होती है बावली,
क्योंकि रहती है उतावली।
बौड़म जी ने
सिगरेट ख़रीदी
एक जनरल स्टोर से,
और फ़ौरन लगा ली
मुँह के छोर से।
ख़ुशी में गुनगुनाने लगे,
और वहीं सुलगाने लगे।
दुकानदार ने टोका,
सिगरेट जलाने से रोका-
श्रीमान जी!मेहरबानी कीजिए,
पीनी है तो बाहर पीजिए।
बौड़म जी बोले-कमाल है,
ये तो बड़ा गोलमाल है।
पीने नहीं देते
तो बेचते क्यों हैं?
दुकानदार बोला-
इसका जवाब यों है
कि बेचते तो हम लोटा भी हैं,
और बेचते जमालगोटा भी हैं,
अगर इन्हें ख़रीदकर
आप हमें निहाल करेंगे,
तो क्या यहीं
उनका इस्तेमाल करेंगे?

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सिक्के की औक़ात / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita

एक बार
बरखुरदार!
एक रुपए के सिक्के,
और पाँच पैसे के सिक्के में,
लड़ाई हो गई,
पर्स के अंदर
हाथापाई हो गई।
जब पाँच का सिक्का
दनदना गया
तो रुपया झनझना गया
पिद्दी न पिद्दी की दुम
अपने आपको
क्या समझते हो तुम!
मुझसे लड़ते हो,
औक़ात देखी है
जो अकड़ते हो!

इतना कहकर मार दिया धक्का,
सुबकते हुए बोला
पाँच का सिक्का-
हमें छोटा समझकर
दबाते हैं,
कुछ भी कह लें
दान-पुन्न के काम तो
हम ही आते हैं।

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फिर तो / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita

आख़िर कब तक इश्क
इकतरफ़ा करते रहोगे,
उसने तुम्हारे दिल को
चोट पहुँचाई
तो क्या करोगे?

-ऐसा हुआ तो
लात मारूँगा
उसके दिल को।

-फिर तो पैर में भी
चोट आएगी तुमको।

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ससुर जी उवाच / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita

डरते झिझकते
सहमते सकुचाते
हम अपने होने वाले
ससुर जी के पास आए,
बहुत कुछ कहना चाहते थे
पर कुछ
बोल ही नहीं पाए।

वे धीरज बँधाते हुए बोले-
बोलो!
अरे, मुँह तो खोलो।

हमने कहा-
जी. . . जी
जी ऐसा है
वे बोले-
कैसा है?

हमने कहा-
जी. . .जी ह़म
हम आपकी लड़की का
हाथ माँगने आए हैं।

वे बोले
अच्छा!
हाथ माँगने आए हैं!
मुझे उम्मीद नहीं थी
कि तू ऐसा कहेगा,
अरे मूरख!
माँगना ही था
तो पूरी लड़की माँगता
सिर्फ़ हाथ का क्या करेगा?

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कौन है ये जैनी? / अशोक चक्रधर हास्य कविता Hasya kavita

बीवी की नज़र थी
बड़ी पैनी-
क्यों जी,
कौन है ये जैनी?

सहज उत्तर था मियाँ का-
जैनी,
जैनी नाम है
एक कुतिया का।
तुम चाहती थीं न
एक डौगी हो घर में,
इसलिए दोस्तों से
पूछता रहता था अक्सर मैं।
पिछले दिनों एक दोस्त ने
जैनी के बारे में बताया था।

पत्नी बोली-अच्छा!
तो उस जैनी नाम की कुतिया का
आज दिन में
पाँच बार फ़ोन आया था।

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खटमल-मच्छर-युद्ध / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita

'काका' वेटिंग रूम में फँसे देहरादून ।
नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून ॥
मच्छर चूसें खून, देह घायल कर डाली
हमें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना ली
किंतु बच गए कैसे, यह बतलाएँ तुमको
नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको

हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर ।
ऊपर मच्छर खींचते नीचे खटमल वीर ॥
नीचे खटमल वीर, जान संकट में आई ।
घिघियाए हम- "जै जै जै हनुमान गुसाईं
पंजाबी सरदार एक बोला चिल्लाके - |
त्व्हाणूँ पजन करना होवे तो करो बाहर जाके ॥

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व्यर्थ / काका हाथरसी हास्य कविता Hasya kavita

काका या संसार में, व्यर्थ भैंस अरु गाय ।
मिल्क पाउडर डालकर पी लिपटन की चाय ॥
पी लिपटन की चाय साहबी ठाठ बनाओ ।
सिंगल रोटी छोड़ डबल रोटी तुम खाओ ॥
कहँ ‘काका' कविराय, पैंट के घुस जा अंदर ।
देशी बाना छोड़ बनों अँग्रेजी बन्दर ॥
जप-तप-तीरथ व्यर्थ हैं, व्यर्थ यज्ञ औ योग ।
करज़ा लेकर खाइये नितप्रति मोहन भोग ॥
नितप्रति मोहन भोग, करो काया की पूजा ।
आत्मयज्ञ से बढ़कर यज्ञ नहीं है दूजा ॥
कहँ ‘काका' कविराय, नाम कुछ रोशन कर जा ।
मरना तो निश्चित है करज़ा लेकर मर जा॥

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